यहां सबसे पहले 13 जनवरी के दिन नागा साधुओं के द्वारा शाही स्नान किया जाएगा।

महाकुंभ का मेला इस साल प्रयागराज में लगने वाला है। यहां सबसे पहले 13 जनवरी के दिन नागा साधुओं के द्वारा शाही स्नान किया जाएगा। बड़ी संख्या में नागा साधु कुंभ मेले में आते हैं। हालांकि, बाकी समय ये एकांतवास करते हैं, हिमालय की दुर्गम चोटियों पर ये दुनिया से अलग रहकर गुप्त तरीके से योग-ध्यान और साधना करते हैं। लेकिन ऐसे में सवाल उठता है कि, इन्हें महाकुंभ का पता कैसे लग जाता है, और कैसे महाकुंभ के दौरान बड़ी संख्या में नागा साधु पवित्र घाटों पर पहुंच जाते हैं। नागा साधुओं की दुनिया से जुड़े कुछ ऐसे ही रहस्यों के बारे में आज हम आपको अपने इस लेख में जानकारी देने वाले हैं।नागा साधु 12 साल तक ब्रह्मचर्य का पालन करने के बाद पूर्ण रूप से दीक्षित होते हैं। अपने दीक्षा काल के दौरान नागा साधु हिमालय के दुर्गम पहाड़ों में तप करते हैं। लेकिन जब भी महाकुंभ का स्नान होता है, तो रहस्यमयी तरीके से ये उस स्थान पर पहुंच जाते हैं। इनके पास किसी भी तरह संपर्क साधने का जरिया जैसे मोबाइल आदि नहीं होता। ऐसे में सवाल उठता है कि ये कैसे जान जाते हैं कि कब और कहां महाकुंभ का मेला लगने वाला है? ये बात जरा हैरान करती है। अगर आपके मन में भी ये सवाल है तो इसी का उत्तर हम देने जा रहे हैं।

दरअसल नागाओं के सभी 13 अखाड़ों के कोतवाल महाकुंभ से काफी पहले महाकुंभ की तिथि और स्थान की जानकारी देना शुरू कर देते हैं। कोतवाल के द्वारा स्थानीय साधुओं को सूचना दी जाती है, इसके बाद श्रृंखला बनती रहती है और धीरे-धीरे दूरदराज में साधना कर रहे नागा साधुओं तक भी सूचना पहुंच जाती है। इसके बाद नागा साधु उस स्थान की ओर कूच करना शुरू कर देते हैं, जहां महाकुंभ लगने वाला है। वहीं कुछ लोग यह भी मानते हैं कि, योग से सिद्धियां पाए नागा साधुओं को ग्रह-नक्षत्रों की चाल से ही महाकुंभ की तिथि और स्थान का पता लग जाता है। जहां भी नागा साधु डेरा डालते हैं वहां धुनि अवश्य जलाते हैं। इस धुनि को बेहद पवित्र माना जाता है और इससे जुड़े कई नियम भी हैं। धुनि की आग को साधारण आग नहीं माना जाता। यह सिद्ध मंत्रों के प्रयोग से सही मुहूर्त में जलाई जाती है। इसे जलाने का एक नियम यह भी है कि नागा साधु बिना गुरु के आदेश या सानिध्य के धुनि नहीं जला सकता। एक बार धुनि जलने के बाद, धुनि जलाने वाले नागा साधु को उसके निकट ही रहना पड़ता है। अगर किसी परिस्थिति में नागा साधु को धुनि के पास से जाना पड़े तो उसका कोई सेवक वहां जरूर होना चाहिए। नागा साधुओं के पास जो चिमटा होता है, वो भी केवल इसीलिए होता है कि, धुनि की आग को व्यवस्थित किया जा सके। नागा साधु यह मानते हैं कि पवित्र धुनि के पास बैठकर अगर नागा साधु कोई बात बोल दे तो वो पूरी अवश्य होती है। जब नागा साधु यात्रा करते हैं तो धुनि उनके पास नहीं होती, लेकिन जहां भी ये अपना डेरा जमाते हैं वहां धुनि अवश्य जलाते हैं।नागा साधुओं को आपने भी अवश्य देखा होगा। ये हमेशा निर्वस्त्र रहते हैं। इसके पीछे नागा साधु जो तर्क देते हैं वो यह है कि, इंसान दुनिया में निर्वस्त्र ही आया है। प्राकृतिक रूप से व्यक्ति को संसार में रहना चाहिए, इसीलिए नागा साधु वस्त्र नहीं पहनते। दूसरी धारणा यह है कि वस्त्र धारण करने से उनकी साधना में भी विघ्न पड़ता है। अगर साधु वस्त्रों के माया जाल में ही फंसा रहेगा तो उसके कारण काफी समय खराब होगा। यह वजह भी है कि नागा साधु कभी वस्त्र धारण करना पसंद नहीं करते। वो प्राकृतिक रूप में रहकर आसानी से हर कार्य को करते हैं। योग करके नागा साधु अपनी देह को इतना मजबूत कर देते हैं कि, हर परिस्थिति और जलवायु में वो निर्वस्त्र जी सकते हैं। 


   

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